मंगलवार, 23 जून 2009

इश्क कभी करियो ना


( मत्त पूछ मेरे सब्र की इन्तेहा कहा तक है ? तू सितम कर ले ,तेरी ताक्कत जहा तक है , वफे की उम्मीद जिन्हें होगी ,उन्हें होगी , हमें तो देखना है , तू जालिम कहा तक है ?)
वाह वाह वाह वाह क्या खूब कहा है लाजवाब ! ऐसे ही पंक्तियाँ मैंने अपने माननीय जिगरी मित्र श्री द्विवेदी जी के मुख से सुनी थी चंद दिनों पहले ! हुआ यूँ की हमारे माननीय मित्र जी को चंद दिनों पहले प्यार हो गया हाँ भैएया प्यार वही जो अक्सर हिंदी फिल्मों में होता है हीरो को हेरोइन से ! अब बात यूँ है की हमारे मित्र जी उस टाइप के हैं नहीं मतलब हमारी (लेखक ) तरह भाई हम तो ठहरे किसन कन्हैया पर हमारे मित्र जी के आदर्श (प्रभु श्री राम चन्द्र जी) वो थोडा आदर्श वादी थोडा शर्मीले परन्तु उग्र स्वाभाव के है और भैएया हम कसम खा के कहे रहे हैं की उन्होंने किसी कन्या की तरफ जल्दी आंख भी न उठा के देखी हाँ ये अलग बात है की कई कन्याओं ने उनकी तरफ आंख उठाया (प्यार का इजहार {propose} किया पर नाकाम हुई ! अब आप ये सोच रहे होंगे की फिर आखिर ये घटना(प्यार ) घटी कैसे ! राज की बात बताऊँ तो दूबे जी को भी नहीं पता चला की ये कैसे हो गया ! अब प्यार हुआ तो थोडी महक उठी कहते हैं ना की इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते ! बस उस इसक की खुसबू हमारे (लेखक) और हमारे एक और मित्र माननीय श्री भट्टाचार्य जी (हमारी ही तरह किशन कन्हैया हैं) की नाकों तक पंहुच गई बस फिर क्या था वही ठिठोली का हो भैय्या के है हमहू का बतावा और फिर दुबे जी का शर्मा के कहना नहीं हो मरदे कौनो बात ऐसन नाइ है लेकिन कब तक दूबे जी हमारी ठिठोलियों से बच पते और आखिर कर राज खुला की वह खुसनसीब उन्ही के ऑफिस की थी ! फिर क्या जब आदमी प्यार में पड़ता है न तो उसकी जिंदगी रंगीन (हरा रंग * ) हो जाती है हरियाली छा जाती है ! फिर क्या दूबे जी का देर से अड्डे पे आना अरे भईया जुआ नहीं चाए के (सुनील टी स्टाल ) हमेशा मुस्कुराना फ़ोन पे थोडा दूर जा कर बातें करना !दिन गुजरते गए ! ये़काएक एक दिन दूबे जी आए और कहा मित्र क्या मैं मोटरसाइकिल धीमे चलता हूँ मैंने कहा कभी आप से रस लगाई नहीं तो कैसे बता दूं मैंने चुटकी लेते हुए पूछा की क्या कोई स्कूटी वाली आगे निकल गई फिर उन्होंने रहस्ययोदघाटन किया की उसने (नाम नहीं लूँगा )कहा की मैं बहूत धीमे चलाता हूँ (बाइक) ! मैंने कहा भैय्या जान जोखिम में डालने की जर्रूरत नहीं है जान है तो जहान है अब भैएया आप ही बताएँ क्या मैंने गलत कहा ! दिन गुजरते गए ! फिर एक दिन शाम को पंहुचे मेरे बगल में आकर खड़े हो गए कभी अपने आप को देखते कभी मुझे देखते मैं पूंछ बैठा भैय्या बात क्या है कहीं हमरे दू ठो सींघ तो नहीं उग आयी ! कहने लगे क्या मैं देखने में कद से छोटा हूँ ऐसा उसने (नाम नहीं लूँगा ) कहा मैंने कहा काहे आठवां अजूबा बनना है का लम्बे होके अब आप ही बताएं 5फुट 9इंच लम्बाई है और क्या चाहिए ! मैंने पूंछा लड़की है या कोमेनटेअटर हमेशा कमेन्ट करती रहती है ! खैर कुछ दिन बीते एक शाम मैंने और भट्ट जी ने देखा कि दूबे जी के हाथों में बड़ा सा दूध का पाउच (अमूल गोल्ड ) हम पूँछ बैठे भैएया कबसे हाय रे वो सर्मीली मुस्कान जो दूबे जी के चेहरे पे आयी मुस्कुराते हुए कहा उनके (नाम नहीं लूँगा ) लिए है फिर हमारी और भट्ट जी की ठिठोलियाँ शुरू का हो मरदे दूध पिलावत बाटा अरे थोडा हमनो के स्वाद चखा दा दूबे जी तत्काल वहां से निकल लिए दूध का पैकेट हाथ में लेके ! कहा जाता है की प्यार कोई खेल नहीं दूबे जी ने भी खूब मसक्कतें की और आखिर एक दिन प्यार का इजहार कर ही दिया लेकिन विडंबना देखिये की उसने (नाम नहीं लूँगा ) बताया की मेरा पहले से ही एक पुरुष मित्र है सोचिये क्या गुजरी होगी दूबे जी पर कसम से मैं होता तो दहाडें मारता हुआ वहीँ विछिप्त हो जाता खैर दूबे जी मजबूत दिल के आदमी उन्होंने अपने आप को सम्हाल लिया और फैसला किया की मैं इसका प्यार पा के रहूँगा ! दिन गुजरते गए ! फिर एक दिन शाम को दूबे जी आए और मुझसे पूँछ बैठे की भईया ये स्टआपी क्या होती है मैं चौंक गया मैंने पूंछा मालिक इ का इ शब्द दिमाग माँ कैसे आइल बताने लगे की आज वो (नाम नहीं लूँगा ) कहने लगी की मेरा पुरुष मित्र मुझे
मोटरसाइकिल पर बैठा कर यही करतब करता था तत्काल मैंने समझाया की भैएया ये मोटरसाइकिल की वो करतबबाजी है जो अक्सर मनुष्य मानसिक रूप से विछिप्त हो जाने के बाद करता है इसमें मोटरसाइकिल का अग्र भाग नीचे और पश्चा भाग ऊपर होता है इतना कहना ही था की दूबे जी को पसीने छूट गए कहने लगे भगवान् ने बचाया आज ! दिन बीतते गए दूबे जी रंगीन होते गए लेकिन कहते हैं ना की किसके दिल में क्या छुपा है कोई नहीं जानता ! दूबे जी उसपे जान छिड़कते घर पंहुचाते , दूध पिलाते उन्हें क्या पता की वो उनका फायदा उठा रही है उनके भावनाओ से खेल रही है कहते हैं की प्यार आदमी को अँधा कर देता है ! दिन बीतते गए एक दिन दूबे जी गरम दूध की तरह उबलते हुए आए हम पूँछ बैठे का भइल मरदे एयका एक दूबे जी बोल पड़े की बहुत किया सम्मान .................................;और नहीं अपमान ......................; हम चौंक गए की भई ये क्या हुआ फिर दूबे जी ने एक गहरी सांस लेते हुए बोला की आज उसने दफ्तर में अपने मुहबोले भाई से कहा की मैं उसे छेड़ता हूँ इतना कहते ही दूबे जी ने अपना दूरभाष यन्त्र (मोबाइल) निकाला और और उस सुकन्या पर पिल पड़े सवाल जवाब का दौर और दो चार अपशब्दों के बाद वाक युद्घ समाप्त हो गया ! दूबे जी ने फिर कसम खाई की आज के बाद दुबारा उस लड़की का ख्याल मन में नहीं लाऊंगा खैर जो भी हुआ दूबे जी को इससे एक सब़क मिल गया और वो अज कल कहते हैं की
(
हमने भी प्यार किया था ज़िन्दगी में , बड़ी जोश के साथ ! हमने भी प्यार किया था ज़िन्दगी में , बड़ी शोर के साथ ! अब हम प्यार करेंगे बड़ी सोच के साथ क्यों की उसे कल शामको देखा किसी और के साथ )

4 टिप्पणियाँ:

प्रवीण द्विवेदी की दुकान ने कहा…

कहानी के सारे पात्र और घटनाएँ पूरी तरह सत्य है , मै इस कहानी का प्रमुख पात्र दूबे जी हूँ,और ये पूरी तरह सच है की इस दर्द को मैंने अभी जल्दी ही महसूस किया है , कहानीकार
मेरे अभिन्न मित्र है सो कहानी के साथ पूरा नेयाय हुवा है .....साधुवाद

प्रवीण द्विवेदी की दुकान ने कहा…

कहानी के सारे पात्र और घटनाएँ पूरी तरह सत्य है , मै इस कहानी का प्रमुख पात्र दूबे जी हूँ,और ये पूरी तरह सच है की इस दर्द को मैंने अभी जल्दी ही महसूस किया है , कहानीकार
मेरे अभिन्न मित्र है सो कहानी के साथ पूरा नेयाय हुवा है .....साधुवाद

अभिषेक ने कहा…

कहानी की सत्यता हेतु मै भी कसमें खा सकता हूँ....कहानी में उपस्थित एक छोटा सा पात्र मैं भी हूँ...कैरेक्टर छोटा ही सही पर मजबूत होना चाहिए...
चिटठा जगत में इस भोकाली एंट्री के लिए तिवारी जी को ढेर सारी बधाई...

Mohd. Nadeem Siddiqui ने कहा…

इस कथा के विषय मे बस इतना कहना चाहता हूँ.. की पूरी तरह से तो नहीं पता लेकिन दूबे जी के दिल के हाल से थोड़े हम भी वाकिफ हैं..पर कहते है न अंत भला तो सब भला....