सोमवार, 13 जुलाई 2009

मस्ती की पाठशाला

पाठशाला यह शब्द सुनते ही मन रोमांचित हो जाता है खास कर बच्चों का पढाई,मोटी मोटी किताबें ,गुरु जी की पिटाई ओफ्फ़ इतना सब कुछ एक साथ एक ही पाठशाला में ऐसा combo ऑफर तो कोई कंपनी वाले भी नहीं देते होंगे ! मेरी शिक्षा की शुरुआत हुई जब मैं ३ वर्ष का था ! गाँव के ही प्राईमरी पाठशाला में मेरा दाखिला करवाया गया कक्षा १ में ! घर के बहुत करीब होने के कारण मैं एक दम बिंदास हो के जाता था क्यूँ की मास्टर साहब गाँव के ही थे ! १० बजे से ही कक्षाएं शुरू हो जाती थी लेकिन मैं ११ बजे पंहुचता था एक दम हीरो बन के रंगीन कपड़ा पीठ पे झो़ले का बैग जिसमे तख्ती,श्याही ,गनवर की कलम,दवात और एक किताब होती थी ! सबसे पीछे बैठने के बाद मेरी पढाई शुरू होती थी तब तक अंग्रेजी की कक्षा बीत चुकी होती थी ! पूरे समय मैं उन्ही पांच चीज़ों में खोया रहता था कभी फूल बनाना कभी का खा गा लिखना और फिर मास्टर साहब की डांट गाय बनाने को कहा था गधा बना दिया बिलकुल अपनी तरह ! भोजनावकास के दौरान चोर पुलिस का खेल खेलना और छुपी छुपान खेलना ! शिक्षा का अभाव होने के कारण ४ साल की उम्र में शहर में एक जाने मने अंग्रेजी माध्यम स्कूल में मेरा दाखिला करवा दिया गया माँ और पिता जी का सपना था की मैं अंग्रेजी माध्यम से पढूं ! मुझे एक रिश्तेदार के यहाँ रखा गया मेरी माँ खूब रोई आखिर रोती भी क्यों न उनके जिगर का टुकडा उनसे दूर जो हो रहा था मैं भी खूब रोया लेकिन पिता जी के आगे एक न चली वो भी क्या करते दुःख तो उन्हें भी था! पिता जी मुझे स्कूल में छोड़ने गए तो जाते वक़्त मैं जोर जोर से रोना शुरू कर दिया मुझे नहीं पढना यहाँ मैं घर चलूँगा पापा ने घूर के पूछा किसान बनना है मैं रोते हुए बोला आप जो कहेंगे मैं वही करूँगा पर पढाई नहीं करूँगा फिर पिता जी ने जोर की डांट लगाई मैं चुप चाप क्लास में जा के बैठ गया ! वैसे स्कूल अछा था वहां मास्टर जी की जगह मैडम पढाती थी अंग्रेजी माध्यम होने के कारण मुझे शुरू शुरू में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा! मैडम कहती सिट डाउन तो मैं इधर उधर देखता रहता कई बार तो मेरी पिटाई भी हुई ! मेरा दाखिला दुबारा उसी कक्षा यानि १ में हुआ ! धीरे धीरे समय बीतता गया मेरा मन लगने लगा स्कूल में रोज सुबह तैयार हो के जाना स्कूल की पोशाक में और इंटरवल में खूब धमाचौकड़ी मचाना ! शाम को कमीज सफ़ेद से काली हो जाती कभी इंक की होली तो कभी धूल की होली ! पर पढाई में आगे न निकल पाए कारण अंग्रेजी में विषय होने के कारण समझ में ही नहीं आते तकरीबन कक्षा ३ तक तो मुझे अंग्रेजी समझने में ही लग गया उसके बाद सायद मैं एक बार कक्षा ५ में प्रथम आया था! कक्षा ६ में मेरा दाखिला दूसरे शहर में करवाया गया जगह नयी लोग नए काफी दिन एडजस्ट करने में लगा लेकिन यहाँ भी वही मजे! तब तक मैं बड़ा भी हो गया था शुबह स्कूल पंहुच जाना फिर प्रार्थन और फिर उसके बाद क्लास फिर इंटरवल यहाँ इंटरवल में एक खेल प्रचलित था फुटबॉल हम एक छोटी सी गेंद पर टूट पड़ते और धक्का मुक्की करते रहते घंटी बज जाती फिर वही क्लास शुरू! पढाई में तो मेरा मन लगता ही नहीं था हमेशा क्लास में पीछे बैठना और दोस्तों से गप्पें लड़ाना परीक्षा में भी मेरे अछे अंक नहीं आते ! पिता जी को सिकायत भेजी गई उसके बाद मुझे काफी डांट पड़ी! मार पीट में मैं बहुत आगे था बुल रेसलिंग मेरा प्रिये शौक था अपने किसी विरोधी को अक्सर मैं बुल रेसलिंग के लिए ललकारता था ! छुट्टी के समय मैं अक्सर लड़कों की पिटाई करता था नक़ल करने में भी अव्वल था ! खैर जैसे तैसे मैंने क्लास ८ पास किया उसके बाद उसी सहर में मेरा दाखिला इंटर कॉलेज में करवाया गया तब तक मेरे कुछ भाई टाइप के मित्र बन गए थे ! शुबह कॉलेज निकल जाना एक कॉपी ले के और दिन भर इधर उधर घूमना कॉलेज में मार पीट करना ! नक़ल करने में मैं उस्ताद था पुर्ची बना के ले जाता और परीक्षा के दौरान अक्सर लड़कों की कॉपी छीन लेता ! धीरे धीरे मैं स्कूल का सबसे बड़ा गुंडा बन गया मेरे शासन काल में कई युद्घ लड़े गए कुछ में हमारी जीत हुई कुछ में विरोधी दल की ! हम कॉलेज गोल मरने में बहुत आगे थे कोई कांती शाह की नई फिल्म लगी नहीं की हम देखने पंहुच जाते ! सीटिया बाजी भी मैंने जम के की मोहल्ले के टॉप सीटिया बाजों में मेरी गिनती होने लगी ! बोर्ड परीक्षा के दौरान अक्सर लड़के मुझे अपनी पुर्चियाँ दे देते क्यों की मेरी चेकिंग नहीं होती थी अन्दर जाते समय ! परीक्षा के दौरान अक्सर शिक्षकों से झड़प और फिर धमकी देना (गुरु जी बाहर मिलिए) ! १० वीं की परीक्षा में मेरे कुछ खास अंक नहीं आए पिता जी काफी नाराज हुए माँ ने भी खूब समझाया उसके बाद मैंने पढाई में ध्यान देना शुरू किया नतीजा १२ वीं में अछे अंको से पास हुआ सब लोग खुश हो गए पिता जी ने मुझे नयी साइकिल दी जो की तीसरे दिन ही चोरी हो गई थी बदले में मैंने उसी कॉलेज से एक साइकिल उठवा दी आखिर गुंडा जो था उस कॉलेज का ! फिर मेरा दाखिला लखनऊ के एक डेंटल कॉलेज में हुआ राजधानी की चकाचौंध में मैं खो सा गया था हॉस्टल में रहने के कारण कोई परिवार की बंदिश नहीं थी देर शाम तक राजधानी की सड़क पे घूमता रहता साल भर ऐसा घूमा की बस अपना मूल कर्तव्य (पढाई) ही भूल गया नतीजा अंक खराब आए पिता जी ने फिर समझाया ! यहाँ पे भी अपना सम्राज्य फैलाना शुरू किया कॉलेज के टॉप गुंडे को बुल रेसलिंग में हरा के कॉलेज के टॉप गुंडे का किताब जीत लिया ! यहाँ मैं कई बुरी आदतों से लैश हो गया लड़की पटाना , सिगरेट पीना,बियर पीना प्रमुख थे ! जैसे तैसे पढाई पूरी हुई ठीक ठाक अंकों से पास हो गया ! आज डॉक्टर बन गया हूँ ! मोह माया के जाल में फंसा बैठा हूँ पर गुंडागर्दी में कोई कमी नहीं आई है अभी भी माफिया मित्र हैं और कुछ अछे मित्र भी और अब मैं डॉन के नाम से पुकारा जाता हूँ!
पर मैं अपने वो दिन कभी नहीं भुला सकता और अक्सर भगवान् से यही मांगता हूँ की काश एक बार उस पल को फिर से जी पाता और अक्सर ये गाना गुनगुनाता हूँ
talli hoke girne se samjhi hamne gravity
ishq ka practical kiya tab aayi clearity
na koi padhne wala na koi sikhne wala
naata yeh sannata hai dekho lambu shor hain
har dil mein bud bud karta h2so4 hain
na koi padhne wala na koi sikhnewala
apni toh paathshala masti ki paathshala

बुधवार, 8 जुलाई 2009

DIL DOSTI etc.

मत इंतज़ार कराओ हमे इतना
कि वक़्त के फैसले पर अफ़सोस हो जाये
क्या पता कल तुम लौटकर आओ
और हम खामोश हो जाएँ

दूरियों से फर्क पड़ता नहीं
बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है
दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है
वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती है

दिल से खेलना हमे आता नहीं
इसलिये इश्क की बाजी हम हार गए
शायद मेरी जिन्दगी से बहुत प्यार था उन्हें
इसलिये मुझे जिंदा ही मार गए

मना लूँगा आपको रुठकर तो देखो,
जोड़ लूँगा आपको टूटकर तो देखो।
नादाँ हूँ पर इतना भी नहीं ,
थाम लूँगा आपको छूट कर तो देखो।

लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,
कोई करता है तो इल्जाम देते है।
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।

भीगी आँखों से मुस्कराने में मज़ा और है,
हसते हँसते पलके भीगने में मज़ा और है,
बात कहके तो कोई भी समझलेता है,
पर खामोशी कोई समझे तो मज़ा और है...!

मुस्कराना ही ख़ुशी नहीं होती,
उम्र बिताना ही ज़िन्दगी नहीं होती,
दोस्त को रोज याद करना पड़ता है,
क्योकि दोस्त कहना ही दोस्ती नहीं होती.

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

mp3(मेरा पहला पहला प्यार)


देखती होगी जब भी दर्पण खुद पे इतराती तो होगी ...
महबूब की बाहों में समाने को ये जवानी बल खाती तो होगी ...
ख्वाब में ही सही मुझसे मिलने पर ये नज़रें चुराती तो होगी ...
तेरा दीवाना है सोच के मन ही मन तुम मुस्कुराती तो होगी ..
मधुर मिलन की तड़पन तेरे दिल की आग भड़काती तो होगी ...
अपने दिल का हाल किस्से कहूँ ये सोच के कसमसाती तो होगी ...
कुछ ऐसा ही हाल है इधर जब से तूने इस दिल को धड्काया है ...
सागर में भी था प्यासा इस बात का ये एहसास मुझे कराया है ...
है इश्क आग का एक दरिया तो उस पर तेरे प्यार को बसाया है ..
जानता हूँ तू सुबह की मखमली धूप और मुझपर रात का साया है ..
जल जाऊँगा इस इश्क की आग में क्योंकि इसे तूने जो लगाया है ...
हुस्न की आग और इश्क के परवाने की ये मोहब्बत तेरे सदके फ़रमाया है ...

क्योंकि तेरे दिल की आहट ने ही मेरे दिल की आग को भड़काया है ...

मंगलवार, 23 जून 2009

इश्क कभी करियो ना


( मत्त पूछ मेरे सब्र की इन्तेहा कहा तक है ? तू सितम कर ले ,तेरी ताक्कत जहा तक है , वफे की उम्मीद जिन्हें होगी ,उन्हें होगी , हमें तो देखना है , तू जालिम कहा तक है ?)
वाह वाह वाह वाह क्या खूब कहा है लाजवाब ! ऐसे ही पंक्तियाँ मैंने अपने माननीय जिगरी मित्र श्री द्विवेदी जी के मुख से सुनी थी चंद दिनों पहले ! हुआ यूँ की हमारे माननीय मित्र जी को चंद दिनों पहले प्यार हो गया हाँ भैएया प्यार वही जो अक्सर हिंदी फिल्मों में होता है हीरो को हेरोइन से ! अब बात यूँ है की हमारे मित्र जी उस टाइप के हैं नहीं मतलब हमारी (लेखक ) तरह भाई हम तो ठहरे किसन कन्हैया पर हमारे मित्र जी के आदर्श (प्रभु श्री राम चन्द्र जी) वो थोडा आदर्श वादी थोडा शर्मीले परन्तु उग्र स्वाभाव के है और भैएया हम कसम खा के कहे रहे हैं की उन्होंने किसी कन्या की तरफ जल्दी आंख भी न उठा के देखी हाँ ये अलग बात है की कई कन्याओं ने उनकी तरफ आंख उठाया (प्यार का इजहार {propose} किया पर नाकाम हुई ! अब आप ये सोच रहे होंगे की फिर आखिर ये घटना(प्यार ) घटी कैसे ! राज की बात बताऊँ तो दूबे जी को भी नहीं पता चला की ये कैसे हो गया ! अब प्यार हुआ तो थोडी महक उठी कहते हैं ना की इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते ! बस उस इसक की खुसबू हमारे (लेखक) और हमारे एक और मित्र माननीय श्री भट्टाचार्य जी (हमारी ही तरह किशन कन्हैया हैं) की नाकों तक पंहुच गई बस फिर क्या था वही ठिठोली का हो भैय्या के है हमहू का बतावा और फिर दुबे जी का शर्मा के कहना नहीं हो मरदे कौनो बात ऐसन नाइ है लेकिन कब तक दूबे जी हमारी ठिठोलियों से बच पते और आखिर कर राज खुला की वह खुसनसीब उन्ही के ऑफिस की थी ! फिर क्या जब आदमी प्यार में पड़ता है न तो उसकी जिंदगी रंगीन (हरा रंग * ) हो जाती है हरियाली छा जाती है ! फिर क्या दूबे जी का देर से अड्डे पे आना अरे भईया जुआ नहीं चाए के (सुनील टी स्टाल ) हमेशा मुस्कुराना फ़ोन पे थोडा दूर जा कर बातें करना !दिन गुजरते गए ! ये़काएक एक दिन दूबे जी आए और कहा मित्र क्या मैं मोटरसाइकिल धीमे चलता हूँ मैंने कहा कभी आप से रस लगाई नहीं तो कैसे बता दूं मैंने चुटकी लेते हुए पूछा की क्या कोई स्कूटी वाली आगे निकल गई फिर उन्होंने रहस्ययोदघाटन किया की उसने (नाम नहीं लूँगा )कहा की मैं बहूत धीमे चलाता हूँ (बाइक) ! मैंने कहा भैय्या जान जोखिम में डालने की जर्रूरत नहीं है जान है तो जहान है अब भैएया आप ही बताएँ क्या मैंने गलत कहा ! दिन गुजरते गए ! फिर एक दिन शाम को पंहुचे मेरे बगल में आकर खड़े हो गए कभी अपने आप को देखते कभी मुझे देखते मैं पूंछ बैठा भैय्या बात क्या है कहीं हमरे दू ठो सींघ तो नहीं उग आयी ! कहने लगे क्या मैं देखने में कद से छोटा हूँ ऐसा उसने (नाम नहीं लूँगा ) कहा मैंने कहा काहे आठवां अजूबा बनना है का लम्बे होके अब आप ही बताएं 5फुट 9इंच लम्बाई है और क्या चाहिए ! मैंने पूंछा लड़की है या कोमेनटेअटर हमेशा कमेन्ट करती रहती है ! खैर कुछ दिन बीते एक शाम मैंने और भट्ट जी ने देखा कि दूबे जी के हाथों में बड़ा सा दूध का पाउच (अमूल गोल्ड ) हम पूँछ बैठे भैएया कबसे हाय रे वो सर्मीली मुस्कान जो दूबे जी के चेहरे पे आयी मुस्कुराते हुए कहा उनके (नाम नहीं लूँगा ) लिए है फिर हमारी और भट्ट जी की ठिठोलियाँ शुरू का हो मरदे दूध पिलावत बाटा अरे थोडा हमनो के स्वाद चखा दा दूबे जी तत्काल वहां से निकल लिए दूध का पैकेट हाथ में लेके ! कहा जाता है की प्यार कोई खेल नहीं दूबे जी ने भी खूब मसक्कतें की और आखिर एक दिन प्यार का इजहार कर ही दिया लेकिन विडंबना देखिये की उसने (नाम नहीं लूँगा ) बताया की मेरा पहले से ही एक पुरुष मित्र है सोचिये क्या गुजरी होगी दूबे जी पर कसम से मैं होता तो दहाडें मारता हुआ वहीँ विछिप्त हो जाता खैर दूबे जी मजबूत दिल के आदमी उन्होंने अपने आप को सम्हाल लिया और फैसला किया की मैं इसका प्यार पा के रहूँगा ! दिन गुजरते गए ! फिर एक दिन शाम को दूबे जी आए और मुझसे पूँछ बैठे की भईया ये स्टआपी क्या होती है मैं चौंक गया मैंने पूंछा मालिक इ का इ शब्द दिमाग माँ कैसे आइल बताने लगे की आज वो (नाम नहीं लूँगा ) कहने लगी की मेरा पुरुष मित्र मुझे
मोटरसाइकिल पर बैठा कर यही करतब करता था तत्काल मैंने समझाया की भैएया ये मोटरसाइकिल की वो करतबबाजी है जो अक्सर मनुष्य मानसिक रूप से विछिप्त हो जाने के बाद करता है इसमें मोटरसाइकिल का अग्र भाग नीचे और पश्चा भाग ऊपर होता है इतना कहना ही था की दूबे जी को पसीने छूट गए कहने लगे भगवान् ने बचाया आज ! दिन बीतते गए दूबे जी रंगीन होते गए लेकिन कहते हैं ना की किसके दिल में क्या छुपा है कोई नहीं जानता ! दूबे जी उसपे जान छिड़कते घर पंहुचाते , दूध पिलाते उन्हें क्या पता की वो उनका फायदा उठा रही है उनके भावनाओ से खेल रही है कहते हैं की प्यार आदमी को अँधा कर देता है ! दिन बीतते गए एक दिन दूबे जी गरम दूध की तरह उबलते हुए आए हम पूँछ बैठे का भइल मरदे एयका एक दूबे जी बोल पड़े की बहुत किया सम्मान .................................;और नहीं अपमान ......................; हम चौंक गए की भई ये क्या हुआ फिर दूबे जी ने एक गहरी सांस लेते हुए बोला की आज उसने दफ्तर में अपने मुहबोले भाई से कहा की मैं उसे छेड़ता हूँ इतना कहते ही दूबे जी ने अपना दूरभाष यन्त्र (मोबाइल) निकाला और और उस सुकन्या पर पिल पड़े सवाल जवाब का दौर और दो चार अपशब्दों के बाद वाक युद्घ समाप्त हो गया ! दूबे जी ने फिर कसम खाई की आज के बाद दुबारा उस लड़की का ख्याल मन में नहीं लाऊंगा खैर जो भी हुआ दूबे जी को इससे एक सब़क मिल गया और वो अज कल कहते हैं की
(
हमने भी प्यार किया था ज़िन्दगी में , बड़ी जोश के साथ ! हमने भी प्यार किया था ज़िन्दगी में , बड़ी शोर के साथ ! अब हम प्यार करेंगे बड़ी सोच के साथ क्यों की उसे कल शामको देखा किसी और के साथ )

रविवार, 21 जून 2009

सपनो की है दुनिया मेरी




मैं और मेरी तन्हाईयाँ अक्सर ये बातें करती है कि मैं मिस्टर बोंड होता तो ऐसा होता मैं बिल्ला होता तो वैसा होता ! ये किसी विभाग के पद नहीं हैं और न ही राजनीती के कोई राजनीतिज्ञ ये फिल्मो के वो महान किरदारों के नाम हैं जिनसे मैं प्रभावित हूँ ! हाँ मैं (राय जेम्स राय ) नाम तो सुना होगा मेरी सपनो कि दुनिया में मैं इसी नाम से जाना जाता हूँ ! सभी सपने देखते हैं और जाहिर सी बात है कि मैं भी इस से अछूता नहीं हूँ ! मैं अपने सपनो कि दुनिया का बेताज बादशाह हूँ ! हर किरदार में ढ़लना मुझे बखूबी आता है पर किरदार दमदार हो वो अकेला सैकडों पे भारी हो और बीमारी में महामारी हो ! मैं सपनो में अक्सर ऐसे किरदार का चुनाव करता हूँ जो लम्बे को़ट और गोल हैट लगाता हो मेरी माने तो ऐसे वस्त्रों की शान ही कुछ और है जींस और टी-शर्ट में वो बात कहाँ ! हर सपने में मैं अकेला ही सैकडों पे भारी पड़ता हूँ ! सपनो में मेरा बड़ा सा घर पन्द्रह बीस गाडियां हथियारों से लैश सैकडों आदमी पर मेरा कमरा भूमिगत होता है सामने गोल मे़ज और हमेशा दरवाजे की तरफ पीठ और वही वस्त्र जिसका जिक्र मैंने पिछले लाइन में किया है धारण किये बैठा होता हूँ और हाथ में सिगरेट (नोट -पब्लिक प्लेस पे सिगरेट पीने की आज्ञा नहीं है इसी लिए लेखक सपनो की दुनिया में भी एकान्ता में ही कश् मारता है) ! मैं हमेशा ऐशे मिशन पे जाता हूँ जो असंभव हो और ऐसे राष्ट्र में जिसका नाम केवल सपनो में सुना हो ! और एक्शन ऐसा की रोंगटे खड़े कर दे वैसे एक्शन के द्रिश्य का चुनाव मैं हमेशा संजू बाबा (संजय दत्त ) की फिल्मों से करता हूँ और हमेशा अपने दुश्मन को कड़ी से कड़ी सजा देता हूँ जैसे की नेशनल हाईवे के एक तरफ मैं होता हूँ और दूसरी तरफ से उसे आँखों में पट्टी बांध कर दौड़ा दिया जाता है और बीच में १०० की रफ्तार से आते जाते वाहन सोचिये जरा रोंगटे खड़े हो जायेंगे ! मैं अक्सर सपनो में हथियारों का चुनाव जेम्स बोंड की फिल्मों से करता हूँ जैसे की घडी , माउसर ऐसे कई सारे उपकरण हैं जिन्हें मैं उपयोग में लाता हूँ ! और हर वक़त बैकग्राउंड में यही धुन बजवाता हूँ (जाने क्या होगा रामा रे) ! और हर सपने में मेरी हार्दिक इछा होती है की मार पीट के दौरान पुलिस की तरह देर से पंहुच कर भीड़ को चीरता हुआ उसी लिबास में (लॉन्ग को़ट और गोल हैट) सब कुछ जानते हुए भी ये सवाल करूँ की ये सब क्या हो रहा है ! लेकिन कभी कभी सपनो की दुनिया में जीना बहुत भारी पड़ता है जैसे की पिता जी रात के वक़्त घर आए दरवाजा खटखटाया मैं पूँछ बैठा कोड बताओ बस फिर क्या था वही बैकग्राउंड की धुन बजी( जाने क्या होगा रामा रे ) ! कई बार तो मैं परीक्षा में कोड नंबर 007 लिख आया ! आप को पढ़ के सायद अटपटा लगा हो पर मैं कुछ पंक्तियाँ कहना चाहूँगा की ( सपनो की है दुनिया मेरी: मेरी आँखों से देखो जरा )!!!!!!!!!!!

और आखिर में एक छोटी सी सायरी है सपनो की दुनिया पे की
(सपनो की दुनिया में हम खोते चले गए , होश में थे फिर भी मदहोश होते चले गए ) (जाने क्या बात थी उनके किरदार में , की उन्ही के किरदार में खोते चले गए!!!!!!!!!! )


मेरा नाम नील रतन तिवारी है.प्यार से हमें लोग नीलू भी कहा करते हैं.ब्लॉगिंग के दुनिया में मै नया नाम हूँ पर आप लोगों की प्रेरणा और उत्साहवर्धन से आगे बढ़ने का प्रयास रहेगा..... साभार
नीलू